This Is..."My World Of Cinema"  

Thursday, August 2, 2007



"सिनेमा" शब्द ही सुनते मन उसके संदर्भों
को ज्ञात करने के लिए उत्सुक हो उठता है,
मात्र भारतीय ही नहीं वरन विश्व के सभी
कोने में अवस्थित अन्य भी यही सोंचते हैं।
सिनेमा का जो सबसे अवरोधित ढाँचा है वह
भारतीय परंपरा के पैरों तले दबा पड़ा है…
मुझे यह कहते जरा भी संदेह नहीं होता है
कि विश्व सिनेमा के किसी भी परिपेक्ष में हम
अत्यंत पिछड़े और अज्ञानी हैं… क्योंकि हमने
सिनेमा को मात्र अपने मनोरंजन के
साधन के रुप में लिया है जो सबसे
बड़ा हास्यास्पद विषय है, जबकि आज
हम लगातार शिक्षा की नई सीढ़ियों
को छूते जा रहे है, हमारे सिनेमा का
स्तर लगातार गिरता ही दिख रहा है।
सबसे अचरज की बात तो यह है कि
हम वो सभी भी भूलते जा रहे हैं जो
हमारे पूराने सिनेमा के शिक्षकों ने
सिखाया था… चाहे वह "बिमल राय" हों
या "राजकपूर" फिर चाहे "सत्यजित रे"
हों या "रित्विक घटक" ; आज कोई
भी एक ऐसा निर्देशक नहीं है जिसकी
कल्पनाशीलता उसकी सोंच इनके किसी
स्तर को पकड़ भी पाती हो…



बड़ा अफसोस होता है यह सुनकर
कि आज तलक विश्व स्तर पर
हमारे कुछ गिने-चुने फिल्मो को
छोड़ किसी भी फिल्म ने अपनी
पहचान नहीं बनाई… बड़ा गंभीर
प्रश्न है यह मगर साथ में सोंचनीय
भी…।
हम चाहे लाख यह कह ले कि
ऑस्कर में हमारे साथ न्याय नहीं
होता, शायद आज से साल भर पहले
मैं भी कुछ ऐसा ही सोंच रखता था
पर जब अन्य देशों में बनी बहुत सी
फिल्में देखने का मौका मिला तो मैं
दंग रह गया… क्या क्लास है…क्या
सोंच है…क्या स्तर है…

सिनेमा को कला का सबसे प्रभावी
और बड़ा रुप माना जाता है क्योंकि
यहाँ सब आ जाता है, चाहे वह चित्रकला
हो या शिल्पकला…दर्शन हो या नाटक।
इन सारे तत्वों को जिस रुप में विदेशों
में लिया गया है वह नितांत ही सराहनीय
है…। अरस्तु ने Ars Poetica में इसपर
काफी चर्चा की है और सबसे ज्यादा
महत्वपूर्ण बात उन्होनें जो बताई वह
यह की नाटक को देखकर जब व्यक्ति
अपने CATHARSIS ( अपने अंदर दबी
हुई कई सारी भावनाएँ) को उठेल देता है
और खुद में कोई नई आकृति को पनपता
देखता है वहीं वह सबकुछ पा जाता है… यही सिनेमा का भी एक
महत्वपूर्ण आयाम है जब हम उसे देखकर अपने अंदर
दबे हुए उन सारे जटिलताओं को परदे पर चल रहे
चरित्रों के द्वारा पूरा होते पाते हैं तो जो एक
सकून मिलता है वह दुनियाँ में शायद
इतनी आसानी से और द्वारों द्वारा न मिल पाये…
मैं यह मानता हूँ कि विश्व स्तर पर हमें बहुत से
नये आयाम तलाशने हैं…और काफी से बेकार के
अवरोधों को काटना है, जिससे सिनेमा का
विकास मानसिक स्तर और मनुष्य के भीतरी
अवस्थाओं तक हो जिसे वृहत रुप में दिखाया जा सके।

AddThis Social Bookmark Button


3 comments: to “ This Is..."My World Of Cinema"

Design by Amanda @ Blogger Buster