सिनेमा…Entertainment औR कला !!!
Saturday, November 3, 2007
विश्व सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है… जब पहली
बार Pinhole camera(Aristotle)का निर्माण संभव हुआ और बाद में
Frisius ने Camera Obscura ( जिसमें कोई लेंस नहीं था…मात्र कुछ
कागज के टुकड़े थे) ने सिनेमा का मार्ग प्रशस्त किया…फिर यूरोप के
Lumiere Brothers ने 1895 में कैमरा और प्रोजेक्शन को मिला पहला
Cinematography कैमरा तैयार किया जिसमें 35mm film / 16f/s के
हिसाब से चलता था इस कारण ही उस वक्त के सिनेमा-पट पर पात्र तेज
गति से चलते नजर आते थे…। भारत में भी इसकी शुरुआत 1896 में
होटल वॉटसन परिसर में उपर के दोनों भाइयों ने ही अपनी पहली मुवी
"Arrivee d'un Train a la Gare de Ciotat" (Arrival of aTrain at Ciotat
Station) और"La Sortie de l'Usine" (Leaving The Factory) दिखाई
जो सिर्फ यूरोप में दिखाने के 6 महीने बाद ही भारत मे भी लाई गई थी।
मेरा ये सब लिखने का मात्र यही कारण है कि अगर सामन्य रुप से देखा
जाए तो हम मात्र आधे साल ही पिछे हैं सिनेमा के स्तर से किंतु हमारा
सिनेमा लगातार पतन की ओर ही उन्मुख हैं… साल में कुछ 2-4 ही
ऐसी फिल्में आती हैं जिसे देखकर लगता है कि वह हमसे कुछ कह रही हैं…
जिसमें कुछ नई बात होती है…जो हमसे प्रश्न पूछती है…जो दिखलाती हैं
कि इसका सही रुप क्या है…।
सिनेमा-- The Highest Form Of Art मतलब साफ है कि यह
एक ऐसा कला-माध्यम है जिसके गर्भ में समस्त कला का समागम संभव
है और है भी, जहाँ कला का पूरा स्वरुप निखर कर बाहर आता है…पर
हमने क्या किया है इसे और ज्यादा निखारने के लिए मात्र पैसे के लिए
हमने इस कला को गर्त में पहुंचाया गया… कहते हैं कि Canne's Film fest..
में लोग हमारी फिल्मों को देखकर हंसते-2 गिर जाते है। जब हमारा भारत
80% अशिक्षित था तब हमारे हिंदी सिनेमा ने राज-कपूर, बिमल राय,गुरु-दत्त
जैसे महान निर्माता- निर्देशक दिये ,जिनकी फिल्में हमारे पास एक अद्भुत
संग्रह के रुप में मौजूद हैं एवं बाक्स आफिस पर हिट भी रही हैं पर आज
जब हम 80% शिक्षित हैं तो सिनेमा का स्तर और ज्यादा गिर गया है…
हाँ एक बात मै बताना चाहता हूँ कि ये सभी बातें मैंने मात्र "हिंदी सिनेमा"
के लिए की हैं… भारत में ही दो ऐसे प्रांतीय सिनेमा उद्योग हैं---
एक "बंगाली" दूसरा "मल्लयाली", जिसने एक से बढ़कर एक फिल्में भारत
को दी हैं… मौका मिला तो कुछ फिल्में जो मैंने देखी हैं उसपर चर्चा अवश्य
करुंगा। तो यह कीड़ा सिफ हमारे उद्योग को ही लगा है, जो एक बड़ा अश्चर्य है…
हमारे सारे फिल्म उद्योग के लोग यही कहते पाये जाते हैं कि अभी हमारा
समाज अनुभवहीन हैं पर जो नंगा नाच हमारी फिल्मों में दिखाया जा रहा है
वह तो यही वर्ग है जो समझता भी है और मजे भी लेता है किंतु अर्थपूर्ण
सिनेमा के लिए यह वर्ग तैयार नहीं है, कुछ अजीब नहीं लगता है…???
आज हम निश्चित ही सिनेमा के लिए अशिक्षित हैं पर इसे
सिनेमा के द्वारा ही शिक्षित भी किया जा सकता है… स्कूल में हम निरंतर
उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते रहते हैं और यह काम एक शिक्षक का होता है…
उसीप्रकार एक निर्देशक ही हमें उस मकाम तलक ले जा सकता है जहाँ
“विश्व सिनेमा” पहुंचा है…।
November 4, 2007 at 1:29 AM
सिनेमा भी हमारे जीवन शैली का और गति का परिचय देता है । ऐसी बात नही है कि अच्छी फिल्में बन ही नही रही । लेकिन ये बात ठीक है कि कहानी में दम भी हो तो भी नंगेपन का मसाला डालने का लोभ संवरण निर्माता निर्देशक नही कर पाते ।
November 5, 2007 at 10:05 PM
विश्व सिनेमा पर आपने अपने अनुभवों के आधार पर बहुत सुंदर प्रस्तुति की है , आज के समय में सिनेमा निश्चित रूप से हमारे जीवन की गति को प्रभावित करता है , बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाईयाँ !
November 6, 2007 at 8:48 AM
दिव्याभ, अरे वाह, नया ब्लोग। सिनेमा के बारे में काफी जानकारी मिल सकती है लगता है आपके इस ब्लोग से।