"Saawariya" -- कुछ तो लोग कहेंगे  

Sunday, December 9, 2007



यहाँ यह शीर्षक मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिसका चुनाव बहुत सोच-विचार कर किया गया है… हाँ यह सच है कि काफी विलम्ब हो चुका है इस फिल्म के संदर्भ में कुछ-भी कहने-सुनने के लिए पर अच्छी बातों का कोई समय नहीं होता। “सांवरियाँ” मेरे लिहाज से इस साल की कुछ बेहतरीन फिल्मों
में से एक है…बहुत सी बाते हैं जो शायद लोग समझना नहीं चाहते या उन्हें समझ नहीं आता। इस देश में खासकर हिन्दी सिनेमा में “भंसाली” से बेहतर और कोई निर्देशक मुझे नजर नहीं आता जिसके पास हिम्मत है कुछ नया कर दिखाने की… हम हजार बार यही दोहराते हैं कि हमारी फिल्मों का स्तर बहुत
नीचा है पर मैं यह सेहरा हमारे आलोचकों को भी देना चाहूँगा जो लोगों को पहुंचने ही नहीं देते या फिल्मों पर इसतरह लिखते हैं कि उसे पढ़ने के बाद यही लगता है कि ओम-शांति-ओम जैसी फिल्मों का ही भारतीय हिन्दी सिनेमा में अस्तित्व रहेगा।



काफी बुराई होने बाद भी मुझे इस फिल्म में जो चीजें छू गईं वह जरुर बताना चाहूँगा… “सांवरियाँ” नाम से ही पता चल रहा है कि यह कृष्ण को कहीं कल्पनाओं में पाने की एक जद्दोजहद है और है भी। फिल्म पूरी तरह से कल्पना में ही है और अगर आप इसको इस प्रकार देखें तो पता चलेगा कि हमारी कल्पनायें बहुत जटिल होने के बाद भी मन को शकुन पहुंचाने वाली होती हैं क्योंकि जिसे हम जागृत अवस्था में पाने का प्रयास करते हैं वही हमारे सपनों में भी आता है यानि जो मुझे अच्छा लगे या
मन को भा जाए… यही बात गुलाबो जी (रानी मुखर्जी) के साथ है… है तो वह एक तबायफ ही, उसे भी सपने देखने का हक है और वह देखती भी है, उसे भी सपनों का राजकुमार चाहिए जो उसे लेकर कहीं अनजानी रंगीन दुनियाँ में जाएगा पर उसका Dream Sensor इसे थोड़ा बांध देता है, वह उसे चाहते हुए भी नजदीक नहीं लाना चाहती, उसके सपनों का राजकुमार दूसरे को तलाश करता है जिसे गुलाबों नहीं पा सकती चूँकि वह खुद को जीवन के उन अंधेरों में देखती है जहाँ उसके सामने आशा का किनारा ही नहीं है…। तो हमारी “सकीना” का जन्म होता है जो “इमान” के प्यार में सबकुछ छोड़कर मात्र एकटक प्रतीक्षा-लीन है… इमान जो ईश्वर का संकेत देता है… वह कृष्ण भी हो सकता है, वह जब भी परदे पर आता है सारा माहौल नीले रंग से रंग जाता है… यह राधा का प्रेम भी दर्शाता है… प्रतीक्षा। पर असल में कृष्ण तो राज (रणवीर) है जिसे प्रेम, प्रेम और प्रेम के अलावा कुछ भी नहीं दिखता और यही लय है भंसाली की…। वाकई मानसिक चित्रण का यह बेहतरीन अनुभव इसी निर्देशक से अपेक्षित हैं… क्या संकेत है… दरिया के इस पार अपने कृष्ण को निहारती राधा, लेकिन राज तो मिल भी नहीं सकता था सकीना से क्योंकि वह तो सपना था गुलाबों का (“गुलाबों के मन का कृष्ण”) जिसे वह अपने पास तो नहीं ला सकती किंतु उसे किसी के साथ बांटना भी नहीं है। 'संजय भंसाली' ने राज को मार भी खिलबाया है जिसका संकेत बहुत स्पष्ट है…। हम इस कहानी में इससे ज्यादा की मांग नहीं कर
सकते… कल्पना तो कल्पना होती है और जिस खूबसूरती से इसे पेश किया गया है जब मैं देख रहा था मेरा मन ऐसे ही कई खूबसूरत पात्र बना रहा था जिसे अब तक सामान्य जीवन में सही होता हुआ मैंने नहीं देखा है। मैं इतना प्रफुल्लित हो रहा था कि मेरी व्यस्तता के बावजूद भी मैं इतने दिनों बाद भी इसपर लिखने को आतुर हुआ… निश्चित ही यह कोई समीक्षा नहीं है पर एक सटीक नजर है…। मेरी इस लेखनी के बाद जो भी व्यक्ति इसे देखे वह अपनी प्रतिक्रिया का अनुभव मुझे अवश्य बताए… क्योंकि मुझे यह लगता है कि इसे देखने का दृष्टिकोण
थोड़ा बदलना होगा…।

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5 comments: to “ "Saawariya" -- कुछ तो लोग कहेंगे

  • रंजू भाटिया
    December 9, 2007 at 6:14 PM  

    सुंदर .पहले नही देखी थी ..अब देखूंगी इसको पढने के बाद नए नजरिये से .

  • बालकिशन
    December 9, 2007 at 8:30 PM  

    वाह जनाब. बहुत अच्छा लिखे है. वैसे तो अमूमन में फिल्में नहीं देखता हूँ पर इसे पढ़ने के बाद देखने की इच्छा जागृत हो गयी.

  • कंचन सिंह चौहान
    December 10, 2007 at 3:18 PM  

    पिछले रविवार को देखी हमने यह फिल्म! बिलकुल यही प्रतिक्रिया हमारी भी थी कि आलोचक किसी भी फिल्म का ज़नाजा निकलवाने के लिये काफी हैं। मानवीय संवेदनाओं के मनोविग्यान को सुघरता पूरवक उकेरने वाली यह फिल्म मेरे दिल को छू गई।
    जीवन का एख सत्य कि हम जिसके पीछे भाग रहे हैं वो किसी और के पीछे भाग रहा है और हम सारे सच जानने के बावज़ूद मजबूर होते है भागने के लिये इसे ही शायद मृगतृष्णा कहते हैं।

  • रवीन्द्र प्रभात
    December 18, 2007 at 8:20 PM  

    हमने देखी है यह फिल्म, मगर आपके नजरिये से नही . आपने तो मेरे भीतर फ़िर से नयी जिज्ञासा जागृत कर दी, चलिए समय मिला तो एक बार और देखूंगा !

  • पारुल "पुखराज"
    December 21, 2007 at 8:31 PM  

    pahley nahi dekhi thii ..aapki is post ke baad usi raat dekhi ,aur post bhi puuri nahi padhi thii kyuki mazaa jata rahta hai fir....mujhey NEELEY-PEELEY,RUI AUR DHUYEN KE BAADLON SII LAGI PUURI PICTURE.ALICE IN WONDERLAND TYPE.JAISEY "BLACK" THII SAFED AUR KAALI...KUL MILAAKAR ACHII LAGI...

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